Skip to main content

Posts

बुद्धिमान सरपंच

एक गांव में एक वृद्ध सरपंच रहते थे। बड़े बड़े झगड़ों को वे चुटकियों में सुलझा देते थे। जिसके कारण दूर दूर से लोग उनसे फैसला करवाने आते थे। सरपंचजी अपनी बुद्धिमत्ता के लिए काफी प्रसिद्ध हो चुके थे। एक बार दूर के गांव के कुछ लोग किसी झगड़े के विषय में उनसे सलाह लेने आये। ये लोग न तो सरपंच जी को जानते थे, न ही उनके मकान को जानते थे। गांव के पास पहुंचकर उन्होंने पास के खेत में काम कर रहे चार नवयुवकों से सरपंच जी का पता पूछा। उनमें से एक नवयुवक बोला, ” सरपंचजी का घर तो इसी गांव में है। लेकिन वे अब कुछ बोलते और समझते नहीं। उनके पास जाने से कोई फायदा नहीं।” उन लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्हें टौ बताया गया था कि सरपंचजी पूरी तरह स्वस्थ और सकुशल हैं। उन्होंने विचार किया कि अब यहां तक आ गए हैं तो मिलकर ही जायेंगे। वे आगे बढ़ गए। गांव में प्रवेश करने पर एक कुएं पर चार औरतें पानी भर रही थीं। उन्होंने उन औरतों से सरपंचजी का पता पूछा तो उनमें से एक बोली, “घर तो सामने ही है पर उनको कुछ दिखता नहीं है।” वे लोग असमंजस में पड़ गए। दो जगह उन्होंने पता पूछा और दोनों जगह अलग अलग उत्तर मिला। वे घर के सामने पहुंचे ...

पाप की कमाई

एक गांव में एक हलवाई और एक परचून की आमने सामने दुकान थीं। परचून की दुकान वाला टौ ईमानदारी से धंधा करता था। लेकिन हलवाई दूध में पानी मिलाता और बासी मिठाई को भी ताजा बताकर बेंच देता था। जिससे हलवाई को ज्यादा मुनाफा होता था। वह दिन पर दिन अमीर होता जा रहा था। बेचारा परचून वाला यह सब देखता और सोचता कि पाप करके भी हलवाई कितनी तरक्की कर रहा है। एक दिन उसके यहाँ एक महात्मा आये। उसने उनसे सारी बात बताई और कहा, “महाराज ! मुझे लगता है कि ग्रंथों में गलत लिखा है कि पाप की कमाई नाश का कारण बनती है। मैं तो देख रहा हूँ कि पाप की कमाई से उन्नति होती है।” महाराज जी बोले, “चलो गंगा स्नान करके आते हैं। वहीं तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी मिल जायेगा।” गंगा किनारे महात्माजी ने एक बड़ा गड्ढा खुदवाया और परचूनी को उसमें खड़ा कर दिया। फिर उस गड्ढे में उन्होंने घड़ों से पानी डलवाना प्रारम्भ किया। जब तक पानी परचूनी के गले के नीचे था। वह तब तक आराम से खड़ा रहा। जैसे ही पानी गले से ऊपर पहुंचा। वह बोला, “महाराज! अब बस करिए, नहीं तो मेरी सांसें रूक जायेंगीं।” महाराज बोले, “बस यही बात पाप की कमाई में भी होती है। जब...

Hindi Language हिन्दी भाषा

  वर्णमाला (Alphabets) : किसी भाषा के वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते है. हिंदी भाषा कुल ४९ वर्ण है. वर्ण के भेद: स्वर व्यजन स्वर: वे वर्ण जिनके उच्चारण के लिए किसी दुसरे वर्ण कि आवश्यकता माहि होती. उसे स्वर कहते है. हिंदी वर्णमाला में कुल १४ स्वर है. स्वर में तीन प्रकार होते है; हृस्व दीर्घ प्लुत हृस्व स्वर : जिन स्वरों के उच्चारण में बहुत कम समय लगता है, उसे हृस्व स्वर कहते है. जैसे: अ, इ, उ, आदि. दीर्घ स्वर : जिन स्वरों के उच्चारण में हृस्व स्वर से दुगुना समय लगता है उसे दीर्घ स्वर कहते है. जैसे: आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ आदि. प्लुत स्वर : जिन स्वरों के उच्चारण में हृस्व स्वर से तिगुना समय लगता है प्लुत स्वर कहते है. जैसे : ॐ. व्यंजन: जिन वर्णों के उच्चारण में स्वर कि सहायता से उच्चारण करना होता है उसे व्यंजन कहते है. इसके चार भाग है. स्पर्श अन्तस्थ उष्म उत्क्षिप्त स्पर्श  : क से लेकर म तक के वर्ण को स्पर्श व्यंजन कहते है. यह सभी स्पर्श व्यंजन ५ वर्गों के अंतर्गत आते है. प्रत्येक वर्ग का नाम पहले वर्ग के आधार पर रखा जाता है. क वर्ग : —— क ख ग घ ड़ — कष्ठ च वर्ग: ——- च छ ...

รูปสระ

๑. ะ (วิสรรชนีย์) ใช้เป็นสระอะเมื่ออยู่หลังพยัญชนะ เช่น ปะ กะ และใช้ประสมกับสระรูปอื่น ให้เป็นสระอื่น เช่น เตะ แตะ โต๊ะ เอียะ อัวะ ๒. -ั (ไม้ผัด, ไม้หันอากาศ) ใช้เขียนบนพยัญชนะแทนเสียงสระอะเมื่อมีตัวสะกด เช่น มัด และประสมกับสระรูปอื่น เช่น ตัว ผัวะ ๓. -็ (ไม้ไต่คู้) ใช้ เขียนไว้บนพยัญชนะที่ประสมกับรัสสระที่มีวิสรรชนีย์ เพื่อแทนวิสรรชนีย์เมื่อมีตัวสะกด เช่น เจ็ด (เจะ+ด) และใช้แทนสระเอาะที่มีวรรณยุกต์โท ที่มีคำเดียวคือคำว่า ก็ (เก้าะ ) ๔. า (ลากข้าง) ใช้เป็นสระอา สำหรับเขียนหลังพยัญชนะและใช้ประสมกับรูปสระรูปอื่นเป็นสระ เอาะ อำ เอา เช่น เกาะ ลำเพา ๕. -ิ (พินทุ์อิ) ใช้เป็นสระอิ สำหรับเขียนไว้บนพยัญชนะ เช่น ซิ ผลิ และใช้ประสมกับสระรูปอื่นให้เป็นสระ อี อือ เอียะ เอีย เอือะ เอือ เช่น ผี คือ เกี๊ยะ เสีย เสือ ๖. -่ (ฝนทอง) ใช้เขียนไว้ข้างบนพินทุ์อิ ทำให้เป็นสระอี เช่น ผี มี ปี ๗. " (ฟันหนู) ใช้เขียนไว้ข้างบนพินทุ์อิเป็นสระอือ เอือะ เอือ เช่น มือ เสือ ๘. -ํ (หยาดน้ำค้าง, นฤคหิต) ใช้เขียนไว้ข้างบนลากข้าง ทำให้เป็นสระอำ ( ำ) และเขียนบนพินทุ์อิเป็นสระอึ เช่น จำนำ...

หลักภาษาไทย

1. สระ รูปสระมี 21 รูป และมีชื่อเรียกต่าง ๆ ดังนี้ 1. ะ วิสรรชนีย์ 12. ใ ไม้ม้วน 2. อั ไม้หันอากาศ 13. ไ ไม้มลาย 3. อ็ ไม้ไต่คู้ 14. โ ไม้โอ 4. า ลากข้าง 15. อ ตัว ออ 5. อิ พินทุ์อิ 16. ย ตัว ยอ 6. ‘ ฝนทอง 17. ว ตัว วอ 7. อํ นิคหิตหรือหยาดน้ำค้าง 18. ฤ ตัว รึ 8. ” ฟันหนู 19. ฤๅ ตัว รือ 9. อุ ตีนเหยียด 20. ฦ ตัว ลึ 10. อู ตีนคู้ 21.ฦๅ ตัวลือ 21. ฦา ตัว ลือ 11. เ ไม้หน้า เสียงสระเมื่อนำรูปสระทั้ง 21 รูป มารวมกัน จะได้สระทั้งหมด 32 เสียง จำแนกเป็น 3 กลุ่ม ดังนี้ - สระแท้ มี 18 เสียง แบ่งออกเป็น สระเสียงสั้น ได้แก่ อะ อิ อึ อึ เอะ เออะ โอะ แอะ เอาะ สระเสียงยาว ได้แก่ อา อี อื อู เอ เออ โอ แอ ออ - สระประสม มี 6 เสียง ได้แก่ เอีย เกิดจากเสียง -ี + -า ...

พยางค์

การที่เราเปล่งเสียงออกมาจากลำคอครั้งหนึ่ง ๆ นั้น เราเรียกเสียงที่เปล่งออกมาว่า “พยางค์” แม้ว่าเสียงที่เปล่งออกมาจะมีความหมายหรือไม่มีความหมายก็ตาม เช่น เราเปล่งเสียง “สุ” ถึงจะไม่ รู้ความหมาย หรือไม่รู้เรื่องเราก็เรียกว่า ๑ พยางค์ หากเราเปล่งเสียงออกมาอีกครั้งหนึ่งว่า “กร” จะ เป็น “สุกร” จึงจะมีความหมาย คำว่า “สุกร” ซึ่งเปล่งเสียง ๒ ครั้ง เราก็ถือว่ามี๒ พยางค์ เสียงที่เปล่ง ออกมาครั้งเดียวมีความหมาย เช่น นา หมายถึง ที่ปลูกข้าว เสียงที่เปล่งออกมาว่า “นา” นี้เป็น ๑ พยางค์ ลองดูตัวอย่างต่อไปนี้ ไร่ มี๑ พยางค์ ชาวไร่ มี๒ พยางค์ (ชาว-ไร่) สหกรณ์ มี๓ พยางค์ (สะ-หะ-กอน) โรงพยาบาล มี๔ พยางค์ (โรง-พะ-ยา-บาน) นักศึกษาผู้ใหญ่ มี๕ พยางค์ (นัก-สึก-สา-ผู้-ใหญ่) สหกรณ์การเกษตร มี๖ พยางค์ (สะ-หะ-กอน-การ-กะ-เสด) จากตัวอย่างข้างบนนี้สรุปได้ว่า พยางค์ คือ เสียงที่เปล่งออกมาครั้งหนึ่ง จะมีความหมายหรือไม่มีความหมายก็ตาม ถ้าเปล่ง เสียงออกมา ๑ ครั้ง ก็เรียก ๑ พยางค์ สองครั้งก็เรียก ๒ พยางค์ องค์ประกอบของพยางค์ พยางค์เกิดจากการเปล่งเสียงพยัญชนะ สระ และวรรณยุกต์ออกมาพร้อม ๆ กัน พยางค์ที่มี ความหมายอาจจะเป็นพยา...