13
Hindi Vowels
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ
ऋ अं अ:
39 Hindi Consonants
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह
क्ष त्र ज्ञ श्र
ड़ ढ़
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13
Hindi Vowels
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ
ऋ अं अ:
39 Hindi Consonants
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह
क्ष त्र ज्ञ श्र
ड़ ढ़
Before you start learning Hindi, let us start off with the basics. Hindi is written in Devanagari script. The first step of any language is to learn its alphabets, similar to other languages, Hindi has its own alphabets known as Hindi Varnamala. In Hindi, there is 13 स्वरों (vowels) and 36 व्यंजन(consonants). Learning Hindi requires patience and practice. Experts suggest beginning with learning five letters on a daily basis and increase it as your progress. Approximately a week or ten days would be needed to master Hindi scripts.
Hindi alphabets are also known as Devanagari. In Hindi, there are 48 alphabets. These alphabets can be divided into two parts:
Hindi vowels (Hindi Swaron)
Hindi consonants (Hindi Vyannjana)
Hindi Vowels has 13 alphabets such as:
अ (a) | आ (aa) |
इ (i) | ई (ii) |
उ (u) | ऊ (uu) |
ऋ(ri) | ए (e) |
ऐ (ae, ai) | ओ (o) |
औ (au, or) | अं (am, an) |
अः (ah) |
How to pronounce all vowels, let us relate those alphabets with English words for better practice.
अ – American, Affection, Anil, Anemia.
आ – Africa, Aaj tak, Arm, Argon.
इ – Image, India, Eagle, Easy.
ई – English, Idli, Email.
उ – pUll, pUt, ooty.
ऊ – rOOm, cOOl, Oops
ऋ – Remote, Real.
ए – April, grEAt, brEAd.
ऐ – drAIn, AIshwarya, AId.
ओ – hOme, cOmb, chrOme, Obama
औ – Owl, AUrangabad, Aurangzeb
अं – Uncle, Umbrella, Under.
अः – Aha
Hindi consonants (व्यंजन) has 36 alphabets such as:
क (ka) | ख (Kha) | ग (Ga) | घ (Gha) | ङ (nga) |
च (cha) | छ (chha) | ज (ja) | झ (jha) | ञ (nja) |
ट (Ta) | ठ (Tha) | ड (Da) | ढ (Dha) | ण (Na) |
त (ta) | थ (tha) | द (da) | ध (dha) | न (na) |
प (pa) | फ (pha) | ब (ba) | भ (bha) | म (ma) |
य (ya) | र (ra) | ल (la) | व (wa) | श (sha) |
ष (shha) | स (sa) | ह (ha) | क्ष (ksh) | त्र (tra) |
ज्ञ (gya) |
How to pronounce all consonants.
Let us relate with English words to pronounce better way:
क – Curtain, banK, Kabir.
ख – Khan, laKH.
ग – juG, muG, Gum,
घ – Ghost, Ghee, Gharry.
ङ – Sound of Xn rarely used.
च – CHunk, eaCH, Champak.
छ – Chatigardh, Chatrapati.
ज – Justin, caGE, Junk.
झ – bronZE, breeZE, haZE.
ञ – Sound of gn rarely used.
ट – caT, maT, Truck.
ठ – THanda (cold).
ड – maD, baD, Done.
ढ – Dhaka, Dholak.
ण – no English equivalent.
त – Tamilnadu, Tehran.
थ – THermal, baTH.
द – THE, bagDAD,
ध – DHarma,joDHpur.
न – maN, Name, caNe.
प – maP, caP, Plum.
फ – iF, Fur, Fun.
ब – moB, BulB, Bus.
भ – aBHor, BHakshi.
म – Mud, Margin, Merge.
य – mY, Yes, Ya.
र – Run, Rush, Ram.
ल – baLL, Luck, Lamp.
व – Work, Warm, Wall.
श – SHirt, Shut, Shame.
ष – SHirt, Shut, Shame
स – Sohan, Son, Sun.
ह – Hug, Heard, Hard.
क्ष – akSHay.
त्र – TRishul
ज्ञ – no English word for gya
1- परिश्रम ही दवा है# very short story in hindi
एक चिकित्सक अपनी रामबाण चिकित्सा के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी दी हुई दवा से रोगी को लाभ अवश्य होता था। वे खुद भी स्वस्थ थे और असाध्य रोगों को भी ठीक कर देते थे। वे दिन भर लकड़ी काटने का काम करते और जंगल में रहते थे।
एक दिन किसी असाध्य रोग से पीड़ित एक व्यक्ति ढूढते हुए उनके पास आया। उसने अपना रोग और पीड़ा उनसे बताई। उसका रोग जानकर चिकित्सक ने उसे वहीं पर एक महीने की दवा बना कर दी।
उसके सेवन की विधि में उन्होंने बताया कि इस दवा को अपने माथे के पसीने में मिलाकर लेप करना।उस व्यक्ति ने पूरे नियम से दवा का सेवन शुरू किया।
माथे का पसीना निकालने में उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ती। दवा ने अपना असर दिखाया और एक महीने वे महाशय रोगमुक्त हो गए।
एक माह बाद वे कुछ भेंट लेकर चिकित्सक को धन्यवाद देने पहुंचे। चिकित्सक ने भेंट लेने से मना कर दिया और उन सज्जन को बताया कि चमत्कार दवा से नहीं आपकी मेहनत से हुआ है। दवा में तो मैंने एक जंगली घास दी थी। जिसका कोई प्रभाव नहीं है।
यह कहानी सिखाती है कि मेहनत ही की रोगों की दवा है। इसलिए हमें मेहनत से नहीं घबराना चाहिए।
एक संत थे। उनके पास एक कीमती कम्बल था। एक दिन कोई वह कम्बल चुरा ले गया। कुछ सिन संत ने बाजार में एक व्यक्ति को वही कम्बल एक दुकानदार को बेचते देखा। दुकानदार उस व्यक्ति से कह रहा था कि यह कम्बल तुम्हारा है या चोरी का। इस बात का क्या प्रमाण है? अगर कोई सज्जन व्यक्ति आकर गवाही दे तो मैं यह कम्बल खरीद सकता हूँ।
संत जी पास में ही खड़े थे। उन्होंने दुकानदार से कहा, “मैं इसकी गवाही देता हूँ। तुम इसे भुगतान कर दो।” संत के शिष्यों ने उनसे पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया? तब संत ने कहा, ” यह बेचारा बहुत गरीब है। गरीबी के कारण ही इसने ऐसा काम किया है। हमें हर स्थिति में गरीबों की मदद करनी चाहिए।
संत के ये वचन सुनकर वह व्यक्ति उनके पैरों पर गिर पड़ा और फिर कभी चोरी न करने का वादा किया।
निर्णय करने से पूर्व हमें परिस्थितियों को भी जरूर देखना चाहिए।
3- क्या अच्छा क्या बुरा- Short Story in Hindi
चीन के गांव में एक किसान था। उसका कहना था कि ईश्वर जो भी करते हैं, हमारे भले के लिए करते हैं। एक दिन उसका घोड़ा रस्सी तुड़ाकर जंगल की ओर भाग गया। इस पर उसके पड़ोसियों ने आकर दुख जताया। लेकिन किसान शांत रहा।
दो दिन बाद किसान का घोड़ा वापस आ गया और अपने साथ तीन जंगली घोड़े और लाया। लोगों ने आकर ख़ुशी प्रकट की। लेकिन किसान शांत रहा। दो दिन बाद उन्हीं में से एक जंगली घोड़े की सवारी करते समय उसका पुत्र गिर गया। उसकी एक टांग टूट गयी। पड़ोसियों ने फिर आकर अफसोस प्रगट किया। लेकिन किसान फिर भी शांत ही रहा।
अगले दिन राजा की सेना के लोग गांव आये और गांव के नौजवानों को जबरदस्ती सेना में भर्ती करने लगे। किसान का लड़का पैर टूट होने की वजह से बच गया।
हममें से कोई नहीं जानता कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा? इसलिए ईश्वर जो करते है, हमें उसे अपने लिए अच्छा ही मानना चाहिए।
हमेशा ईश्वर के निर्णय को उदारतापूर्वक स्वीकार करना चाहिए। वे कभी किसी का बुरा नहीं करते।
एक संत मृत्युशैया पर थे। उन्होंने अपने शिष्यों को अंतिम उपदेश के लिए अपने पास बुलाया। उन्होंने शिष्यों से कहा, “जरा मेरे मुंह में देखो कितने दांत शेष बचे हैं? शिष्यों ने बताया “महाराज आपके दांत तो कई वर्ष पहले ही टूट चुके हैं। अब तो एक भी नही बचे।
संत ने कहा, ” अच्छा देखो जीभ है या वह भी नहीं है।” शिष्यों ने बताया कि जीभ तो है। तब उन्होंने शिष्यों से पूछा, ” यह तो बड़े आश्चर्य का विषय है जीभ तो दांतों से पहले से ही मौजूद है। दांत तो बाद में आये थे। जो बाद में आये उनको बाद में जाना भी चाहिए था। फिर ये पहले कैसे चले गए?
शिष्यों के पास कोई उत्तर नहीं था। तब संत बोले, ” ऐसा इसलिए क्योंकि जीभ बहुत मुलायम अर्थात विनम्र है, इसलिए अभी तक मौजूद है। जबकि दांत बहुत कठोर थे। इसलिए पहले चले गए।”
अगर इस संसार में अधिक समय तक रहना है तो नम्र बनो, कठोर नहीं।
विनम्रता मनुष्य को बड़ा और महान बना देती है।
एक बार एक सूफी संत अपने शिष्यों के साथ बाजार से जा रहे थे। उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति एक गाय गाय की रस्सी पकड़े चला जा रहा है। उन्होंने उसको रोक लिया और अपने शिष्यों से पूछा कि बताओ कौन किसके साथ बंधा है? शिष्यों ने तुरंत उत्तर दिया कि गाय बंधी है इस आदमी के साथ।
यह जहां चाहे गाय को ले जा सकता है। इस पर सूफी संत ने झोले से कैंची निकालकर गाय की रस्सी काट दी। रस्सी के कटते ही गाय तेजी से भाग चली। उसके मालिक ने दौड़कर बड़ी मुश्किल से उसे पकड़ा। संत ने अपने शिष्यों को समझाया कि वास्तव में यह व्यक्ति ही गाय से बंधा है। गाय की इसमें कोई रुचि नहीं है। इसीलिए रस्सी कटते ही वह भाग गई।
इसी प्रकार हम भी अपनी इच्छाओं की डोर से बंधे हैं और समझते हैं कि हम आजाद हैं।
सांसारिक वस्तुओं से अधिक मोह नहीं करना चाहिए।
.एक लकड़हारा रोज जंगल लकड़ी काटने जाता था। वहां उसे रोज एक अपाहिज लंगड़ी लोमड़ी दिखाई पड़ती थी। वह सोचता जंगल में इसे भोजन कैसे प्राप्त होता होगा? जबकि यह शिकार भी नहीं कर सकती। एक दिन उसने सोचा कि आज मैं पता लगाऊंगा की यह जीवित कैसे है? लकड़हारा उसी के पास के एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया।
थोड़ी देर बाद उसने देखा कि एक शेर अपना शिकार लेकर आया और वहीं पास की एक झाड़ी में बैठकर खाने लगा। पेट भर जाने के बाद शेष शिकार को वह वहीं छोड़ कर चला गया। उस बचे हुए शिकार से लोमड़ी ने अपना पेट भर लिया। यह देखकर लकड़हारे ने सोचा कि मैं व्यर्थ ही भोजन के लिए इतनी मेहनत करता हूँ।
जब भगवान इस अपाहिज लोमड़ी का पेट भरते हैं। तो मेरा क्यों नहीं भरेंगे? यह सोचकर लकड़हारे ने अपनी कुल्हाड़ी नीचे फेंक दी। उसने वही पेड़ के नीचे अपना आसन जमा लिया और भोजन का इंतजार करने लगा। कई दिन बीत गए, लेकिन कोई उसके लिए भोजन लेकर नहीं आया।
वह भूख से इतना कमजोर हो गया कि चलने फिरने में भी असमर्थ हो गया। लेकिन उसका विश्वास दृढ़ था। तभी उसे एक आवाज सुनाई दी। “अरे मूर्ख! तुझे अपाहिज लोमड़ी ही दिखाई दी। कर्मरत वह शेर नहीं दिखाई दिया। अनुशरण ही करना है तो शेर का क्यों नहीं करता? जो स्वयं का पेट तो भरता ही है, साथ ही इस अपाहिज लोमड़ी का भी पेट भरता है।”
यह सुनकर लकड़हारे को अपनी गलती का अहसास हो गया।
इस संसार में कर्म किए बिना कुछ नहीं मिलता।
इंग्लैंड में एक धर्मनिष्ठ दंपति निवास करते थे। एक बार पति को व्यवसाय में घाटा लग गया। वह हमेशा इसी चिंता में लगे रहते थे। खाना पीना, घर परिवार सब में उनकी रुचि समाप्त हो गयी। चौबीसों घंटे वे बस एक ही चिंता में डूबे रहते।
उनकी पत्नी बुद्धिमान और धर्मपरायण थीं। उन्होंने पति को इस परिस्थिति से निकालने के लिए एक उपाय किया। वहां पर काले कपड़े किसी की मृत्यु होने पर पहने जाते थे। अगले दिन उनकी पत्नी काले कपड़े पहन कर अपने पति के सामने गयीं। पत्नी को काले कपड़े में देखकर पति ने पूछा कि किसकी मृत्यु हो गयी?
पत्नी ने जवाब दिया कि ईश्वर की मृत्यु हो गयी है। पति ने कहा कि यह कैसे संभव है? तुम ऐसा क्यों कह रही हो? तब पत्नी ने उत्तर दिया, “आपके व्यवहार से मुझे ऐसा ही लगता है। क्योंकि जब ईश्वर ही सबका पालन पोषण करता है।
हर सुख दुख से ईश्वर ही निकालता है। तो हमें चिंता की क्या जरूरत? लेकिन आप अपने व्यापार को लेकर अत्यधिक चिंतित हैं। इससे मुझे लगा कि शायद ईश्वर की मृत्यु हो गई है। तभी आप इतना चिंतित हैं।”
पत्नी का जवाब सुनकर पति की आंखें खुल गईं और उसने सारा भार ईश्वर पर छोड़ दिया।
कठिनाइयों में भी धैर्य रखना चाहिए। ईश्वर सबकी मदद करते हैं।
गांधीजी, मोहनदास की उम्र उस समय तेरह वर्ष थी। वे राजकोट के अल्फ्रेड हाई स्कूल में पहले साल के छात्र थे। एक दिन शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर स्कूल में निरीक्षण के लिए आये। उन्होंने छात्रों को अंग्रेजी में पांच शब्द लिखने को दिए। उनमें से एक शब्द था ‘केटल’। जिसकी स्पेलिंग मोहनदास ने गलत लिखी थी।
अध्यापक ने देखा तो उन्होंने बूट की ठोकर लगाकर मोहनदास को सावधान किया कि वह आगे वाले लड़के की कॉपी से देखकर सही कर ले। लेकिन यह मोहनदास को मंजूर नहीं था। बाकी लड़कों के सभी शब्द सही हो गए। केवल मोहनदास का ही एक गलत हो गया।
अध्यापक ने मोहनदास से कहा, “तू बड़ा मूर्ख है, मोहनदास। मैंने तुझे इशारा किया था कि आगे वाले लड़के की कॉपी से देखकर सही कर ले। लेकिन तूने ध्यान नहीं दिया।” मोहनदास पर अध्यापक की इस डाँट का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
सच्चा आदमी बेवकूफ बनना पसन्द करता है। लेकिन चोरी बेईमानी नहीं।
मनुष्य का चरित्र ही उसे महान बनाता है।
अपनी पढ़ाई के दिनों में नेपोलियन को कुछ समय आक्लोनी में एक नाई के घर पर रहना पड़ा था। अपनी सुंदरता के कारण नेपोलियन नाई की पत्नी को पसंद आ गया था। वह तरह तरह के हंसी मजाक और क्रिया- कलापों के द्वारा उसे रिझाने की भरपूर कोशिश करती थी।
लेकिन नेपोलियन ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। कुछ वर्षों के बाद जब नेपोलियन फ्रांस का प्रधान सेनापति बना। तब किसी कार्यवश एक बार उसे आक्लोनी जाना पड़ा। वहां वह नाई के घर भी गया। नाई की पत्नी दुकान पर बैठी थी। नेपोलियन ने उससे पूछा, “क्या तुम्हें बोनापार्ट नाम का कोई लड़का याद है?”
उसने उत्तर दिया, ” हाँ, याद है। लेकिन उसकी चर्चा करना अपना समय नष्ट करना ही है। उसे न तो नाचना, गाना आता था। न ही वह किसी से प्रेमपूर्वक बातें ही कर सकता था।” इस पर नेपोलियन ने हंसते हुए कहा कि अगर वह इन सब चीजों में पड़ जाता तो आज फ्रांस का प्रधान सेनापति नहीं बन पाता।
इसलिए जीवन में सफलता के लिये संयम बहुत आवश्यक है।
संयमित और अनुशासित जीवन ही सफलता की कुंजी है।
एक बहुत धनी व्यापारी था। उसने बहुत धन संपत्ति इकट्ठा कर रखी थी। उसका एक नौकर था संभु। जो अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा गरीबों की मदद में खर्च कर देता था। व्यापारी रोज उसे धन बचाने की शिक्षा देता। लेकिन संभु पर कोई असर नहीं होता था।
इससे तंग आकर एक दिन व्यापारी ने संभु को एक डंडा दिया और कहा कि जब तुझे अपने से भी बड़ा कोई मूर्ख मिले तो इसे उसको दे देना। इसके बाद व्यापारी अक्सर उससे पूछता की कोई तुझसे बड़ा मूर्ख मिला। संभु विनम्रता से इनकार कर देता। एक दिन व्यापारी बीमार हो गया। रोग इतना बढ़ा कि वह मरणासन्न हो गया।
अंतिम समय उसने संभु को अपने पास बुलाया और कहा कि अब मैं इस संसार को छोड़कर जाने वाला हूँ। संभु ने कहा, “मालिक मुझे भी अपने साथ ले चलिए।” व्यापारी ने प्यार से डांटते हुए कहा, “वहां कोई किसी के साथ नहीं जाता।”
संभु ने फिर कहा, ” फिर तो आप धन-दौलत, सुख- सुविधा के सामान जरूर ले जाइए और आराम से वहां रहिएगा।” व्यापारी ने कहा, ” पगले! वहां कुछ भी लेकर नहीं जाया जा सकता। सबको अकेले और खाली हाथ ही जाना पड़ता है।”
इस पर संभु बोला, “मालिक! तब तो यह डंडा आप ही रखिये। जब कुछ लेकर जाया नहीं जा सकता। तो आपने बेकार ही पूरा जीवन धन दौलत और सुख सुविधाओं को एकत्र करने में नष्ट कर दिया। न तो दान पुण्य किया, न ही भगवान का भजन। इस डंडे के असली हकदार तो आप ही हो।”
अधिक धन का लोभ नहीं करना चाहिए। क्योंकि अंत समय में मनुष्य के साथ कुछ नहीं जाता।
एक गणित के अध्यापक को अपने ज्ञान का बहुत घमंड था। एक बार उनको नदी पार कहीं जाना था। वे एक नाव में बैठ गए। नाविक एक बूढ़ा मल्लाह था। नाव चल पड़ी। थोड़ी दूर जाने के बाद उन्होंने मल्लाह से पूछा, “क्या तुमको गणित आती है?” नाविक ने जवाब दिया, “नहीं।”
इस पर शिक्षक बोले, “तब तो तुम्हारी चार आने (चौथाई) जिंदगी बेकार हो गयी। नाविक ने चुपचाप सुन लिया। थोड़ा और आगे जाकर अध्यापक ने पूछा, “क्या तुमको भूगोल का ज्ञान है?” मल्लाह ने कहा, “मुझे नहीं पता कि भूगोल क्या होता है?”
तब वह शिक्षक बोला, “तब तो तुम्हारी आठ आने (आधी) जिंदगी बर्बाद हो गयी।” नाविक इस बार भी कुछ नहीं बोला। थोड़ी देर बाद नाव बीच धारा में पहुंच गई। अचानक तेज हवा चलने लगी।
जिससे नाव डगमगाने लगी। तब मल्लाह ने शिक्षक से पूछा, “आपको तैरना आता है।” अध्यापक ने कहा, “नहीं, मुझे तैरना नहीं आता है।” इसपर नाविक बोला, “गणित और भूगोल न आने से मेरी तो केवल आठ आने जिंदगी बर्बाद हुई। लेकिन तैरना न आने से आपकी पूरी जिंदगी बर्बाद होने वाली है।”
अध्यापक का घमंड चूर-चूर हो गया।
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि किताबी ज्ञान ही सब कुछ नहीं होता। व्यवहारिक ज्ञान भी जरूरी है।
जून की दोपहर थी।आसमान ही नहीं जमीन भी तप रही थी। ऐसे में 8-10 साल का एक लड़का नंगे पांव फूल बेच रहा था। पैरों की जलन उसके चेहरे पर दिख रही थी। वहां से गुजर रहे एक सज्जन को ब्लाक पर दया आ गयी।
वे पास की जूतों की दुकान पर गए और वहां से एक जोड़ी जूते ले आए। जूते बालक को देकर उन्होंने कहा, “लो इन्हें पहन लो।” जूते देखकर बालक खुश हो गया। उसने झटपट जूते पहन लिए।
खुश होकर उसने उन सज्जन का हाथ पकड़ कर पूछा, “क्या आप भगवान हो?” सज्जन चौककर बोले, “नहीं बेटा, में भगवान नहीं हूँ।”
तो बालक चहककर बोला, “तो आप आप जरूर भगवान के दोस्त होंगे। क्योंकि मैंने कल रात भगवान से प्रार्थना की थी। है भगवानजी! धूप में मेरे पैर बहुत जलते हैं। मुझे जूते ले दीजिये और उन्होंने आपसे जूते भिजवा दिए।”
बालक की बात सुनकर सज्जन की आंखों में आंसू आ गए। वे ईश्वर को धन्यवाद देते हुए चल दिये।
हमें हरसंभव दूसरों की मदद करने का प्रयास करना चाहिए। न जाने हम कब ईश्वर के दोस्त बन जाएं।
एक बार राजा भोज अपने मंत्री के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक किसान पथरीली, ऊबड़-खाबड़ जमीन पर गहरी नींद में सोता दिखा। राजा ने मंत्री से कहा, “देखो यह किसान कैसे इस असुविधापूर्ण स्थिति में भी चैन से सो रहा है।”
“जबकि हम सारी सुविधाएं के बावजूद थोड़ी भी अड़चन में ठीक से सो नहीं पाते हैं।” मंत्री बोला, “महाराज! ये सब अभ्यास के कारण है। इसकी परिस्थितियां इसी तरह की हैं। इसलिए यह उनका आदी हो गया है।”
मनुष्य का शरीर बहुत ही कठोर और बहुत सुकोमल भी है। जैसी व्यवस्था उसे मिलती है। वह उन्हींके अनुरूप ढल जाता है।” राजा को मंत्री की बात सही नहीं लगी। उन्होंने कहा कि इसकी परीक्षा ली जाए।
राजा उस किसान को अपने साथ राजमहल ले आये। यहां उसके लिए हर सुख सुविधा की व्यवस्था की गई। उसे बेहद नरम बिस्तर सोने के लिए दिया गया। किसान राजसी ठाठ-बाठ का आनंद लेने लगा।
इस तरह दो तीन महीने बीत गए। किसान उन सुख सुविधाओं का आदी हो गया। फिर एक दिन मंत्री ने चुपके से किसान के बिस्तर में कुछ पत्ते और तिनके रखवा दिए। किसान सारी रात करवटें बदलता रहा। उसे पूरी रात नींद नहीं आयी।
सुबह राजा और मंत्री उसके पास मिलने गए। किसान ने राजा से शिकायत की कि उसके बिस्तर में कुछ गड़ने वाली चीजें हैं। जिसके कारण उसे रातभर नींद नहीं आयी।
यह सुनकर मंत्री ने राजा से कहा, “देखा महाराज, यह वही किसान है। जो पथरीली भूमि पर भी गहरी नींद में आराम से सो रहा था। लेकिन अब यह राजमहल के विलासितापूर्ण जीवन का आदी हो गया है।
अब इससे पत्ते औए तिनके भी चुभते हैं। इसलिए मेरा कथन सत्य ही है कि मनुष्य परिस्थितियों के अनुसार ढल जाता है।
इस कहानी से सीख मिलती है कि हमें अपने शरीर को ज्यादा सुख-सुविधाओं का आदी नहीं बनाना चाहिए।
एक किसान था। उसे खूब धन-संपत्ति अपने पूर्वजों से विरासत में मिली थी। इसलिए उसे किसी चीज की कमी नहीं थी। वह दिन भर बैठकर हुक्का पीकर अपने मित्रों के साथ गप्पें लड़ाता रहता था।
सारा काम उसने नौकरों के भरोसे छोड़ रखा था। जिसका वे लोग फायदा उठाते थे। जिसके कारण उसकी संपत्ति कम होती जा रही थी। लेकिन किसान को अपनी मौज-मस्ती से फुरसत ही नहीं थी। वह इस ओर कोई ध्यान नहीं देता था।
एक दिन उसका एक पुराण मित्र उससे मिलने आया। उसने सब कुछ देखा तो उसे बड़ा दुख हुआ। उसने किसान को समझाने की बहुत कोशिश की। लेकिन उसपर कोई असर नहीं पड़ा।
तब उसके मित्र को एक उपाय सूझा। उसने किसान से कहा कि यहां से थोड़ी दूर पर एक बाबाजी रहते हैं। वे धनप्राप्ति के नुस्खे बताते हैं। तुम्हे भी वहां जाना चाहिए।
किसान तुरंत तैयार हो गया। दोनों बाबाजी के पास पहुंचे। बाबाजी ने किसान को बताया, “तुम्हारे गोदाम, गोशाला और घर में सूर्योदय के समय एक श्वेत नीलकंठ आता है। अगर तुम उसके दर्शन कर लो, तो तुम्हारी संपत्ति बढ़ने लगेगी।”
किसान अगले दिन सूर्योदय से पहले ही उठकर गोदाम की ओर चल दिया। वहां पहुंचकर उसने देखा कि एक नौकर गेहूं की बोरी बेंचने ले जा रहा है। मालिक को देखकर वह डर गया। किसान के डांटने पर उसने कुबूल किया कि वह अक्सर चोरी से अनाज बेंचता है। किसान ने उसको काम से हटा दिया।
फिर वह गोशाला में पहुंचा। वहां उसने देखा कि गोशाला का कर्मचारी दूध बेच रहा है और पैसे खुद रख रहा है। किसान ने उसको भी डांटा और सही से काम करने की नसीहत दी।
दोनों जगह श्वेत नीलकंठ को न पाकर वह घर पहुंचा। वहां उसने देखा कि घर के सब लोग सो रहे हैं। एक नौकरानी घर के कीमती बर्तन चुराकर ले जा रही है। किसान ने उसको भी काम से हटा दिया।
अब किसान श्वेत नीलकण्ठ के चक्कर में रोज गोदाम, गोशाला और घर के चक्कर लगाने लगा। उसके डर से कर्मचारी अब सही से काम करने लगे। जिससे उसकी संपत्ति बढ़ने लगी। लेकिन श्वेत नीलकंठ के दर्शन नहीं हुए।
निराश होकर वह एक दिन फिर बाबा के पास पहुंचा। उसने बाबा से कहा कि बहुत प्रयास के बाद भी मुझे श्वेत नीलकंठ के दर्शन नहीं हुए।
बाबा ने हँसकर कहा, “तुम्हे श्वेत नीलकंठ के दर्शन हो चुके हैं। वह श्वेत नीलकंठ है तुम्हारा कर्तव्य। कर्तव्य का पालन करने से ही लक्ष्मी की वृद्धि होती है।”
हमें अपने कर्तव्य का पालन जरूर करना चाहिए। इसी से उन्नति होती है।
एक मूर्तिकार था। उसने अपने बेटे को भी मूर्तिकला सिखाई। दोनों बाप-बेटे मूर्तियां बनाते और बाजार में बेंचने ले जाते। बाप की मूर्तियां तो डेढ़-दो रुपये में बिकती। लेकिन लड़के की मूर्तियां केवल आठ-दस आने में ही बिक पातीं।
घर आकर बाप लड़के को मूर्तियों में कमी बताता और उन्हें ठीक करने को कहता। लड़का भी समझदार था। वह मन लगाकर कमियों को दूर करता। धीरे धीरे उसकी मूर्तियां भी डेढ़-दो रुपये में बिकने लगीं।
लेकिन पिता तब भी उसकी मूर्तियों में कमी बताता और ठीक करने को कहता। लड़का और मेहनत से मूर्ति ठीक करता। इस प्रकार पांच साल बीत गए। अब लड़के मूर्तिकला में निखार आ गया।
उसकी मूर्तियां अब पांच-पाँच रुपये में मिलने लगीं। लेकिन पिता ने अब भी कमियां निकालना नहीं छोड़ा। वह कहता अभी और सुधार की गुंजाइश है।
एक दिन लड़का झुंझलाकर बोला, “अब बस करिए। अब तो मैं आपसे भी अच्छी मूर्ति बनाता हूँ। आपको केवल डेढ़ दो रुपये ही मिलते हैं। जबकि मुझे पांच रुपये।”
तब उसके पिता ने समझाया, “बेटा! जब मैं तुम्हारी उम्र का था। तब मुझे अपनी कला पर घमंड हो गया था। जिससे मैंने सुधार बन्द कर दिया। इस कारण से मैं डेढ़ दो रुपये से अधिक की मूर्ति नहीं बना सका।
मैं चाहता हूँ कि तुम वह गलती न करो। किसी भी क्षेत्र में सुधार की सदैव गुंजाइश रहती है। मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी कला में निरंतर सुधार करते रहो। जिससे तुम्हारा नाम बहुमूल्य मूर्तियां बनाने वाले कलाकारों में शामिल हो जाये।”
यह कहानी सीख देती है कि सुधार एक निरंतर प्रकिया है। जिसे जीवन के हर क्षेत्र में हमेशा करते रहना चाहिए।
लंदन में एक लड़का रहता था। वह बहुत गरीब था। इसलिए पेट पालने के लिए उसे निरन्तर काम करना पड़ता था। उसे पढ़ने लिखने का बहुत शौक था। लेकिन काम के बोझ के कारण वह लगातार स्कूल नहीं जा पाता था।
जिसके कारण उसकी पढ़ाई रुक रुक के चलती थी। लंदन के एक निम्न बस्ती में एक छोटे से कमरे में वह दो अन्य लड़कों के साथ रहता था। वे दोनों लड़के भी उसी की तरह दिन भर काम करते थे।
जब काम से फुर्सत मिलती वे दोनों लड़के मनोरंजन में जुट जाते। जबकि यह पुस्तकें निकालकर पढ़ना शुरू कर देता। यद्यपि लगातार पढ़ाई न कर पाने के कारण उसे पढ़ने लिखने में दिक्कत होती। लेकिन वह बिना हार माने लगातार प्रयास में लगा रहता।
उसके साथी लड़के उसे चिढ़ाते कि काम से फुरसत के बाद सब मनोरंजन करते हैं। लेकिन ये पढ़ाकू महोदय किताबों से खेलते हैं। लगता है कि ये किताबों से ही इतिहास रचेंगे। उनकी बातें सुनकर वह मुस्कुरा देता।
धीरे लगातार संघर्ष और प्रयास से वह अच्छा लिखने लगा। उसने कहानियां लिखनी शुरू कीं। सर्वप्रथम वह अपने उन्हीं मित्रों को अपनी कहानियां पढ़कर सुनाता। कभी कभी वे प्रसंशा करते किन्तु अधिकांशतः वे उसकी कहानियों का मजाक उड़ाते।
लेकिन लड़के पर कोई फर्क नहीं पड़ता। धीरे धीरे उसने कहानियां समाचारपत्रों में छपने के लिए भेजनी शुरू कर दीं। वह कहानियां भेजता रहा और समाचारपत्र उसकी कहानियों को रिजेक्ट करते रहे। लेकिन उसने हार नहीं मानी।
आखिरकार एक दिन उसकी एक कहानी एक प्रतिष्ठित समाचारपत्र में छपी। इससे उस लड़के का आत्मविश्वास और दृढ़ हो गया। वह लगातार लिखता रहा और बहुत बड़ा उपन्यासकार बना।
आज लंदन ही नहीं अपितु पूरा विश्व उस संघर्षशील लड़के को चार्ल्स डिकेन्स के नाम से जानता है।
संघर्षशील और परिश्रमी व्यक्ति के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।
सर आइजेक न्यूटन बहुत प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। सभी उनके बारे में जानते हैं। उनके पास एक पालतू कुत्ता था। जिसका नाम था डायमंड। वे उसे बहुत प्यार करते थे। वह हमेशा उनके साथ रहता था। यहां तक कि अत्यंत महत्वपूर्ण रिसर्च कार्य करते समय भी वह उसी कमरे में रहता था।
एक बार न्यूटन किसी महत्वपूर्ण खोज से संबंधित तथ्यों को लिपिबद्ध कर रहे थे। अचानक किसी काम से उन्हें कमरे से बाहर जाना पड़ा। सारे कागज वहीं मेज पर छोड़कर वे बाहर चले गए। मेज पर एक मोमबत्ती जल रही थी और डायमंड दरवाजे के पास बैठा था।
अचानक किसी चूहे को देखकर डायमंड उसे पकड़ने दौड़ा। वह पूरे कमरे में चूहे के पीछे भागने लगा। इसी चक्कर में वह मेज पर कूदा। जिससे मोमबत्ती कागजों पर गिर गयी और देखते ही देखते सारे कागज जलकर राख हो गए।
जब न्यूटन वापस आये तो देखा कि उनकी कई महीनों की मेहनत बेकार हो गयी है। उन्हें बहुत दुख हुआ और डायमंड पर बहुत क्रोध भी आया। लेकिन फिर उन्होंने अपने आप को संभाला और सोचा कि इसमें उस बेजुबान जानवर का क्या दोष ?
उन्होंने अपने दुख और क्रोध को पी लिया और डायमंड से बस इतना ही कहा, “डायमंड ! तुम्हें नहीं पता कि तुमने क्या कर दिया है।
यह short story हमें शिक्षा देती है कि कठिन परिस्थितियों में भी हमें सहनशीलता नहीं छोड़नी चाहिए।
एक जंगल में एक बूढ़ा शेर रहता था। बूढ़ा हो जाने के कारण उसके शरीर में पहले जैसी फुर्ती नही रह गयी थी। जिसके कारण वह जंगली पशुओं का शिकार नहीं कर पाता था। जिससे उसका जीवन बहुत कष्टप्रद हो गया था।
एक दिन शिकार की खोज में घूमते हुए उसे एक सोने का कंगन मिला। कंगन देखकर उसे एक उपाय सूझा। वह कंगन लेकर नदी किनारे पहुंचा और किसी के आने का इंतजार करने लगा। थोड़ी देर में उसे एक ब्राम्हण उधर से जाता हुआ दिखा।
तब वह शेर जोर जोर से बोलने लगा, “हे भगवान ! मैं रोज स्नान करके किसी ब्राम्हण को एक सोने का कंगन दान करता हूँ। बिना इस नियम का पालन किये मैं अन्न जल ग्रहण नहीं करता हूँ। क्या आज कोई ब्राम्हण दान लेने नहीं आएगा ? क्या आज मुझे भूखा ही रहना पड़ेगा ?”
उधर से गुजर है ब्राम्हण ने जब शेर की बात सुनीं तो वह ठिठक गया। शेर के हाथ में सोने का कंगन देखकर उसे लालच आ गया। लेकिन उसे डर था कि कहीं शेर उसे कहा न जाय। इसलिए वह पास जाने का साहस नहीं कर पा रहा था।
ब्राम्हण के अनिश्चय को देखकर शेर बोला, “हे ब्राम्हण देवता ! ईश्वर की महान कृपा है। जो उसने आपको मेरे पास दान ग्रहण करने भेज दिया है। आप डरो नहीं, मैं शुद्ध शाकाहारी हूँ। मैं पूरे नियम, धर्म का पालन करता हूँ।”
शेर की बात सुनकर लालच के वशीभूत होकर ब्राम्हण सोने का कंगन लेने शेर के पास चला गया। उसके बाद क्या हुआ होगा आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं। इसीलिए कहा गया है लालच बुरी बला है।
लालच हमेशा व्यक्ति का नुकसान करती है। इसलिए कभी लालच नहीं करना चाहिए।
एक छोटे तालाब में बहुत सी मछलियां रहती थीं। उनमें तीन बड़े मत्स्य भी रहते थे। जिनके नाम दीर्घदर्शी, प्रत्युतपन्नमति और दीर्घसूत्री थे। तीनों अपने नाम के अनुसार ही स्वाभाव वाले थे। दीर्घदर्शी किसी घटना का पहले ही पूर्वानुमान लगा लेता था।
प्रत्युतपन्नमति समस्या के समय तुरंत उसका हल निकाल लेता था। जबकि दीर्घदर्शी बहुत आलसी और मंदबुद्धि था। एक बार कुछ मछुवारों ने मछलियां निकालने के लिए उस तालाब का जल निकालने के लिए एक नाली बना दी। धीरे धीरे उस तालाब का जल कम होने लगा।
जल कम होता देखकर दीर्घदर्शी अपने मित्रों से बोला, “मुझे लगता है इस तालाब के जीवों पर कोई विपत्ति आने वाली है। हमें समय रहते इस तालाब को छोड़ देना चाहिए। इस पर दीर्घसूत्री बोला, “तुम बेकार में चिंता करते हो। ऐसा कुछ भी नहीं है।”
जबकि प्रत्युतपन्नमति ने कहा, “बात तो तुम्हारी ठीक लगती है। लेकिन अभी से परेशान होने की जरूरत नहीं। जब समस्या आएगी तो मैं कोई न कोई उपाय निकाल ही लूंगा।” उन दोनों की बात सुनकर दीर्घदर्शी उसी समय वह तालाब छोड़कर एक नाली से होकर दूसरे गहरे जलाशय में चला गया।
कुछ दिन बाद मछुआरों ने आकर देखा कि अब तालाब में बहुत कम जल बचा है। तो उन्होंने जाल लगाकर सारी मछलियों को पकड़ लिया। उनमें दीर्घसूत्री और प्रत्युतपन्नमति भी थे। प्रत्युतपन्नमति तो मृतक की भांति चुपचाप मछलियों के बीच पड़ गया।
मछुआरे सारी मछलियों को ले जाकर दूसरे तालाब में धोने लगे। वहां उन्होंने मृत मछलियों को तालाब के किनारे अलग रख दिया। मौका देखकर प्रत्युतपन्नमति उछलकर तालाब में कूद गया और उसकी जान बच गयी।
लेकिन दीर्घसूत्री नहीं बच सका। यदि वह समय रहते आलस्य त्यागकर तालाब को छोड़ देता तो वह भी बच जाता। इसलिए कहते हैं कि आलस्य व्यक्ति का दुश्मन होता है।
कभी भी आलस्य नहीं करना चाहिए। संस्कृत में एक सूक्ति भी है कि दीर्घसूत्री विनश्यति अर्थात आलसी व्यक्ति नष्ट हो जाता है।
एक राजा सदैव दुखी रहता था। क्योंकि उसके राज्य के लोग मेहनत करने से कतराते थे। वे बड़े आलसी और कामचोर थे। जब राजा अपने राज्य में भ्रमण के लिए निकलता तो वह देखता कि उसके राज्य की सड़कें कूड़े कचड़े और पत्थरों से भरी पड़ी हैं।
लोग साफ सफाई नहीं करते। सबकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। क्योंकि वे मेहनत नहीं करना चाहते। राजा उनको सुधारना चाहते था। इसके लिए उसने एक उपाय सोचा। एक दिन बहुत सबेरे वह अपने मंत्री के साथ राज्य की मुख्य सड़क पर पहुँचा।
वहां सड़क के बीचोंबीच पड़े एक बड़े से पत्थर के नीचे उसने सोने की मोहरों से भरी एक थैली छुपा दी और चुपचाप चला आया। पूरे दिन उस रास्ते से बहुत से लोग गुजरे लेकिन किसी ने उस पत्थर को सड़क से हटाने की कोशिश नहीं की।
सभी लोग उस पत्थर के बगल से निकल जाते। शाम हो गयी लेकिन वह पत्थर वहीं का वहीं रहा। शाम के समय राजा भेष बदलकर अपने मंत्री के साथ फिर उस जगह पर पहुंचा। उस पत्थर को वहीं पड़े देखकर उसे बड़ा दुख हुआ।
उसने रास्ते से गुजर रहे लोगों से उस पत्थर को हटाने को कहा। लेकिन किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। तब उसने मंत्री के साथ मिलकर पत्थर को हटाना शुरू कर दिया। दो लोगों को पत्थर हटाते देखने के लिए लोग इकट्ठा हो गए। क्योंकि उनके लिए यह अनोखी बात थी।
जब राजा ने पत्थर हटाया तो उसके नीचे से सोने के मोहरों से भरी थैली निकली। जिसे देखकर लोग आश्चर्य चकित हो गए। तब राजा ने उनसे कहा, “यदि तुम लोग इस पत्थर को हटाते तो यह थैली तुम्हे मिलती। लेकिन तुम लोग मेहनत से डरते हो।”
मेहनती लोगों को ही जीवन में सुख सुविधाएं मिलती हैं। इसलिए मेहनत करना प्रारंभ करो। फिर देखना तुम्हारा जीवन बदल जायेगा।” राजा की बात सुनकर लोगों को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने मेहनत करने का निश्चय किया।
परिश्रम सफलता की कुंजी है। इसलिए हमें मेहनत से घबराना नहीं चाहिए।